Sunday, 9 February 2020

प्रायश्चित

प्रिय मानसी,

कैसी हो,मुझे माफ़ करना मैंने आज बहुत डांटा तुम्हें,पर अब बहुत ग्लानि महसूस कर रहा हूं और खुद को रोक नहीं पा रहा तुम्हें यह सब लिखने से। मैंने आज बहुत ग़लत किया जब तुम्हें तुम्हारे कपड़ों की साइज को लेकर टोका और थोड़ी बहस के बाद तुम रोने लगी।तुम्हारे तर्क बहुत मजबूत थे कि शर्म मुझे नहीं देखने वाले को आनी चाहिए जो केवल यहीं देख पा रहा है।पर बेटा मैं तुम्हे कैसे बताऊं।।
क्या बताऊं।।
तुम जब पैदा हुई थी मैं तुम्हारे छोटे छोटे पैरों और मासूम उंगलियों से खेलता रहता था।तुम जब अपनी हथेली से मेरी उंगली कसकर पकड़ लेती तो ऐसा लगता जैसे जीवन सार्थक हो गया है। मैं ऑफिस से दौड़ा दौड़ा आता और इंतजार करता तुम्हारी एक किलकारी के लिए।जब तुम चलने लगी तो तुम्हारी पायल की रुनझुन गूंजती रहती थी मेरे कानों में सारा दिन।पर बेटा आज मैंने तुम्हें रुला दिया।अब मेरा प्रायश्चित तब तक पूरा नहीं होगा जब तक मैं तुम्हें सारी बातें सच सच ना बता दूं।यह मेरे जीवन की वो बातें है जो मैं किसी से बांटना नहीं चाहता,तुम्हारी मां से भी नहीं,पर आज मैं यह सब तुमसे बांट रहा हूं।

बेटा आज की घटना केवल आज ही की घटनाओं का परिणाम नहीं थी,इसकी स्क्रिप्ट तो तब ही लिख ली गई थी जब मैं तुम्हारी उम्र का था और मुझे मेरे दोस्तों और सीनियर्स ने राह गुजरती लड़की को आइटम कहकर छेड़ना सिखाया।आइटम/पटाखा ये सब आम शब्द थे जो हम लड़कियों के लिए प्रयोग करते और फिर तालियां पीटते।हम कॉलेज के बाद लाइब्रेरी की सीढ़ियों पर बैठ जाते और साथी लड़कियों को घूरते रहते।वह हमारा विटामिन ए के सेवन का पीरियड होता था।पर बेटा क्या कहूं वो घूरते क्या थे उनका तो हम मानसिक बलात्कार करते होते थे।और यहीं सबसे बड़ा कारण था कि मैंने तुम्हारी बुआ के कॉलेज पढ़ने का सबसे ज्यादा विरोध किया।लगता है उस दोष का प्रायश्चित भी आज ही होगा।बेटा उस समय मैं जिन लोगों के बीच में उठता बैठता था वहां हमारा हर वाक्य किसी मां,बहन की गाली से शुरू होता था। बहुत सालों बाद तुम्हारी मां ने ही मुझे यह अहसास कराया था कि उस मां और बहन पर क्या गुजरती होगी जिसका पुरुष की मां - बहन होने का श्रेय उसकी हर गाली में स्थान पाना था।बाद में मैं इन गालियों से साला टाइप गालियों पर आ गया।बिना यह समझे कि ये भी तो मेरी मां ,पत्नी और हर स्त्री को मानव नहीं पर शरीर ही बना रही हैं।और शरीर भी नहीं बस एक खिलौना जिससे हम सब को खेलना है।
कभी वास्तव में,
कभी आंखों से,
कभी गालियां देकर,
 तो कभी बकचोदी में।
देखो ना हमने हमारी दोस्तों की महफ़िल को भी बकचोदी नाम दे दिया था,समझ रही हो ना तुम इस शब्द का मतलब ।

पर बेटा सच कहूं मैं आज जितना भी पीछे मुड़कर देख पा रहा हूं इनमें से एक भी हरकत मैंने सोच समझकर नहीं की,मुझे दोस्तों, रिश्तेदारों, फिल्मों सब ने यहीं सिखाया कि औरतों को औरतों की तरह नहीं बस एक शरीर की तरह देखो, मनोरंजन के लिए उपलब्ध शरीर।जब मेरे लिए लड़की ढूंढी जा रही थी तब दोस्तों ने कहा "लड़की चंद्रमुखी हो या पारो की फर्क पैंदा है।"

मुझे ये बताते हुए भी बहुत शर्म आ रही है पर अब बताए बिना नहीं रह पाऊंगा कि मुझे धीरे धीरे ब्लू फिल्में देखने की लत लग गई थी और बाद में यह आदत इतनी खतरनाक हो गई कि कुछ समय तक मुझे हर महिला बिना कपड़ों के ही नजर आती।और ये ही कारण था जब मैं तुम्हारी मां को घर से बाहर निकलने पर टोकता भी था और रोकता भी था। हमारे बीच के बहुत से झगड़े इसी कारण हुए। मैं बहुत डरा रहता सड़कों पर घूमते अपने ही जैसे हैवानों से जिनकी पढ़ाई ही शीला की जवानी जैसे गानों से हुई थी।मुझे आज इस चीज़ पर बहुत पछतावा है और मैं हर लड़की से माफी मांगना चाहता हूं,पर उस समय यह सब मेरे लिए केवल एक फन था।वास्तव में इस फन ने मुझे धीरे धीरे एक मानसिक बलात्कारी में बदल दिया था।और आज जब मैं गहरे सोच रहा हूं तो डर रहा हूं यह स्वीकारते कि जीवन में कभी कमज़ोर क्षण नहीं आया,नहीं तो क्या पता तुम्हारा पिता भी समाज की नज़रों में किसी का बलात्कारी होता।पर बेटा मैं बलात्कारी ही हूं,मैंने भले ही हैदराबाद में प्रियंका की घटना पर वॉट्सएप स्टेटस डालकर बलात्कारियों को गारियाया हो पर आज मुझे महसूस हो रहा है कि हम मानसिक बलात्कारियों और वास्तविक बलात्कारियों में कोई ज्यादा अंतर नहीं होता।


तुम उस दिन पूछ रही थी ना अपनी मां से कि पापा मुझे बस में जाने क्यूं नहीं देते तो बेटा इसके पीछे भी मेरी हैवानियत ही रही है।हम दोस्त जब भी बस में जाते तो किसी ना किसी लड़की या महिला को छेड़ते जरूर।हमें उसे छूने,तंग करने में बहुत मज़ा आता और जब उस दिन तुमने पहली बार बस से कॉलेज जाने की बात की तो मेरे मस्तिष्क में एक दम वो सारे दृश्य घूम गए,मुझे लगा कि कोई तुम्हें भी उसी तरह छूने की कोशिश कर रहा है,तंग कर रहा है।बेटा तुम मेरे कलेजे का टुकड़ा हो और मैं कल्पना में भी तुम्हे परेशान होते नहीं देख सकता।पर आज मेरे आंसू थम नहीं रहे। मैं सच में किसी भी बेटी के बाप होने के काबिल नहीं हूं ।तुम तो मेरा खून हो, मेरे ही हाथों से पली बढ़ी,तुम मेरे लिए कोई शरीर,कोई स्त्री नहीं बहुत कुछ हो।पर बिटिया मैं सिहर जाता हूं यह सोचकर कि घर से बाहर निकलते ही तुम लोगों के लिए क्या बन जाओगी। मैं अंदर ही अंदर बहुत कुढ़ता हूं यह सोचकर कि तुम्हारा भाई मानस क्यूं पूरा दिन पोर्न देखता रहता है और बीबी की वाइंस को फॉरवर्ड करता रहता है पर सच्चाई यह है कि ऐसा समाज मैंने ही उसे दिया है और मुझे मेरे पूर्वजों द्वारा।

हम सब को यहीं सिखाया गया है कि यह सब फन है पर इसी नासमझी ने हमारी दुनिया को तुम्हारे लिए कितना डरावना बना दिया और कितना असुरक्षित भी।

 बेटा अब मेरे जीवन की सांझ आ ढली है। फन के नाम पर मैंने वो सब किया है जिसे सोचकर ही अब मैं शर्म से जमीन में गड़े जा रहा हूं।जो मैंने किया तुम्हें उसकी मैंने केवल झलक दिखलाई है पर असलियत इससे भी नंगी है।मुझे जीवन में हमेशा यह दुख रहेगा कि मैं खुद भी इस फन की खोज में केवल एक शरीर ही बना रहा। आज वास्तव में तुमने मेरी आंखे खोल दी है। मैं अकेला तो अब यह सब बदल नहीं सकता पर तुमसे इन सारे कृत्यों की माफ़ी तो मांग ही सकता हूं । मैं बहुत, बहुत शर्मिंदा हूं अपने बीते दौर पर जब मैं तुम्हारे लिए ऐसा गंदा समाज बना रहा था। मुझे हर समय तुम्हारे लिए डर लगा रहता है और यहीं मेरे गुनाहों की सबसे बड़ी सजा है। कोशिश करना बिटिया अगर अपने इस अभागे पिता को माफ़ कर पाओ तो।
तुम्हारा पिता।।

40 comments:

  1. Reality of society well said mam��

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  2. सच में अद्भुत,
    हम और कुछ नहीं बस एक आईना ढूंढ लेंगे,
    अंदर का मैल धोने को बहुत अंदर तक झाँकना है👌👌

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  3. सत्य और सटीक बात लिखी आपने।।

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  4. Reality with depth.
    Actual way of thinking and delivering a message.
    Keep it up.. please

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  5. नकारात्मक मानसिकता को फाँसी के खूंटे पर टांगता ये लेख वाकई अदबुद है, उम्मीद है मानसिकता बदल जाये तो इंसान खुद बदल जाएंगे

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  6. It is the Bitter Truth of Society.

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  7. अति सुन्दर। इसलिए कहते हैं कि शुरू से ही शिक्षा लड़कों को दी जानी चाहिये कि वे लड़कियों से अच्छा व्यवहार रखे व उन्हें आदर की दृष्टि से देखे।

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  8. समाज के लोगों को बेटीयों के बाहर जाने से रोकने के बजाय बेटों को यह शिक्षा देनी चाहिए कि वह कैसे बर्ताव करें।

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  9. This comment has been removed by the author.

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  10. अद्भुत,प्रेरणादायक..... हम दुसरे के साथ जो करने जा रहे वो अपने साथ हो तो हमे कैसा लगेगा , यह सोचकर कार्य करें तो अच्छा ही अच्छा होगा और प्रायश्चित करना ही नहीं पड़ेगा

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  11. Incredible. Our society needs a great reform.parenting system should be value based. Sanskari ki kami sab ek race me bhag rahe h status, money.awwal aane ki race. Sabhi parents jisme bhag rahe aur next generation b

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  12. आपने पत्र के माध्यम से वह सब कह दिया जो युवा सोचता है और बोलता है। काश आज के पढ़ेलिखे आधुनिक युवा इस दर्द को समझे कि उनका फन किसी और के लिए कितना कष्टकारी होता है, समाज को उसकी कितनी कीमत चुकानी पड़ती है।
    आपके इस ब्लॉग को पढ़कर कईयों में परिवर्तन आएगा ऐसा मेरा विश्वास है।

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  13. एक बेहतर समाज के लिए ये ग्लानि हर पुरुष में आनी जरूरी है।

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  14. समाज में यह सदियों से चलता आ रहा है। हर आदमी बेटी का पिता बनने पर ही समझ पाता है की यह गलत हो रहा है।

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  15. यह वास्तविकता है। सिखाने, समझाने, रोकने, टोकने, बताने, अहसास कराने की आवश्यकता किसे है यह इससे साफ समझ आता है

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  16. Thank you mam for giving clarity and ek aur step badane k liye.

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  17. reality ma'am 100%🔥🔥🤟🤟🤟

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  18. Respected madam, This blog provide us mentality of men,s society and himself thought, This can guide and change lots of life Thank you

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  19. Respected madam, This blog provide us mentality of men,s society and himself thought, This can guide and change lots of life Thank you

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  20. Respected madam, This blog provide us mentality of men,s society and himself thought, This can guide and change lots of life Thank you

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  21. अति सुन्दर रचना

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  22. आज हर जगह भारतीय नारी अपने पैसों के लिए नग्नता के रूप मे परोस के खुद बैठी है .मैने कभी किसी नारीवादी को नही देखा कि उसनै फिल्मो मे या कही औऱ अश्लीलता का विरोध किया हो .
    लोग कहते है कि नारी सम्मान करना भारत की
    परम्परा रही है। लेकिन यही लोग ये भूल जाते है
    कि भारतीय नारी के कुछ गुण होते हैं। इस तरह
    की नारी को भारतीय नारी नहीं कहा जा
    सकता। इस तरह की नारी को देखकर कम उम्र के
    लड़को की सोच तुरंत बदल जाती है और वो
    ग़लत करने लगते है। इसलिए कोई सोच बदलने
    की नसीहत न दे।
    कुछ मुर्ख ये कहते पाये जाते की हम भारतीयो
    की सोच छोटी है इसलिए हम दूसरे देशो से पीछे
    हैं। उन मूर्खो से मैं ये कहना चाहूँगा की औरत के
    नंगे घूमने से कोई देश आगे नहीं बढ़ा और न ही
    किसी देश की तरक्की का स्त्री के नंगे घूमने से
    कोई सम्बन्ध है। कोई देश आगे सिर्फ इसलिए है
    क्योंकि वहां हमारे भारत जैसा भ्रष्टाचार
    नहीं हैं। और हमारा देश आज भी पारिवारिक
    मूल्यों में दुनिया में शीर्ष पर है। कोई भी देश
    हमारे आसपास नहीं टिकता....
    फिर कुछ अक्षय कुमार जैसे स्त्री-देह भोगी लोग
    आजाते है और कहते है की कपडे नहीं सोच छोटी
    है....
    ये अबतक का सबसे बड़ा कुतर्क है। कल को ये
    स्त्रीया खुल्लम खुल्ला सब कुछ
    दिखाएगी तब भी शायद अक्षय कुमार यही
    दलील देंगे।
    क्या कपडे चरित्र तय करेंगे ?? ये बिना सिर पैर
    की दलील है। ये ठीक वैसा ही है कि एक
    शराबी शराब पीते हुए मंदिर में घुस जाये और
    हाथ में बोटल हो,उसके बाद दलील दे की "क्या
    मेरी ड्रिंक तय करेगी कि मैं अच्छा इंसान हु या
    नहीं,पवित्र इंसान हु या नहीं,क्या भगवान
    मेरी ड्रिंक से मेरी भक्ति तय करेंगे"
    व्यक्ति जब किसी खास तरह का वस्त्र पहनता
    है तो कुछ सोचकर ही पहनता है। खासकर स्तन
    जांघ और पीठ का प्रदर्शन करने वाली ये
    स्त्रीया....इनके मन में ही कुछ गन्दगी होती है
    जो इनके वस्त्र के रूप में बाहर आजाती है इसलिए
    सोच छोटी है...ऐसा बोलना सिर्फ एक कुतर्क
    ही नहीं बल्कि इन कपड़ो की ही तरह छोटी
    बात है...
    कुछ लोग खजुराहो की दुहाई देकर अश्लीलता
    को जस्टिफाई करने की कोशिश करते है।
    खजुराहो के पीछे एक कहानी है ,एक मजबूरी
    है,एक कारण है..उसकी आड़ में आप इन चीजो को
    सही नहीं ठहरा सकते। वर्ना ड्रग्स,चरस,गांजा,
    ब्राउन शुगर,हीरोइन इत्यादि नशीले पदार्थ
    भी हमारी संस्कृति का हिस्सा रहे है और आज
    भी अघोर,कालामुख,भैरव,कापालिक इत्यादि
    समुदायो में इन सब का सेवन होता है तो क्या
    अब जगह जगह नशे की बिक्री शुरू कर दे?? शराब
    पर आपने केरल गुजरात बिहार इत्यादि राज्यो
    में प्रतिबन्ध लगा दिया..क्यों?? जबकि
    सुरापान तो राजा महाराजा करते थे। राजा
    दशरथ और जनक जैसे महान राजा भी शराब पीते
    थे...क्यों न हर गली मोहल्ले में ये दुकाने खोल दी
    जाये???
    हमारे एक मित्र है जो हमसे उम्र में काफी बड़े है।
    वो एक वैज्ञानिक है। और IIM(इंदौर) में प्रोफेसर
    हैं। वो कहते है की सेक्स भी एक नशा है। शराब
    ड्रग्स की तरह सेक्स भी नशा है।। और इसका सबसे
    ज्यादा और बुरा प्रभाव कम उम्र के लड़को पर
    पड़ता है खासकर 14 साल से 21 साल की उम्र के
    लड़को पर। और इस से कई तरह के ऐसे कृत्य जन्म लेते है
    जिसे आपके तथाकथित आधुनिक भारत में अपराध
    बोला जाता है।
    हम यहाँ सिर्फ अश्लीलता की बाते कर रहे है
    इसलिये कोई भी यहाँ रेप को बीच में लेकर न
    आये...
    उम्मीद है इन हेरोइनो के पिता भी इनके शरीर नयनसुख सुख प्राप्त करते होंगे।
    कुछ कहते है कि ये लोकतंत्र है सबको अपनी इच्छा
    से जीने का हक़ है। अगर ऐसा है तो फिर शराब
    पीना,ड्रग्स लेना,वैश्यालय चलाना इन सब पर
    प्रतिबन्ध क्यों लगा रखा है?? ये सब भी तो
    लोगो की इच्छा से ही हो रहे है?? किन
    मापदंडो के तहत इन्हें गलत या गैरक़ानूनी
    घोषित किया गया??
    आज की स्त्रियों ने खुद ही खुद को भोग की
    वस्तु बना लिया है। ये एक ब्रह्म सत्य है।। इन्हें
    देखकर कोई पुरुष सिर्फ वासना में डूब सकता है।।
    और शायद यही उसके लिए नारी सम्मान
    होगा...

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  23. This comment has been removed by the author.

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  24. umar27 February 2020 at 22:24

    ये लेख शायद काल्पनिक हो पर हम आपको ऐसे हजारो live केस दिखा देंगे जिसमे बेटिओ/बहुओं नें पैसों के लिए /शारीरिक सुख के लिए /अपने कुकर्म छुपाने के लिए पता नही कितने पिता/भाई /माँ /सास /ससुर को मौत के घाट उत्तार दिया य़ा झूठे case मे फंसा दिया या बेगुनाह पिता भाई, माँ, सास , 
    ससुर नें खुद ही suicide कर लिया. ना ही उस पर किसी नें प्रायश्चित किया ना कि किसी ने लेख लिखा

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  25. नग्न घूमने वाली औरत को कोसने की बजाय महिलावादी सोच बदलने की बात करती है।

    एक 12 या 13 साल के बच्चे को सोच बदलने की नसीहत भी देंगे क्या???? जिसे सही-गलत,नैतिक-अनैतिक ,सोच-विचार का जरा सा भी ज्ञान नही।।

    हम हर चीज को जस्टिफाई क्यों करते है।। फिर आंख मारना,सीटी बजाना,और बीच की उंगली का इशारा इत्यादि को लेकर भी सोच बदलिए न जनाब

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  26. A kumar bhai...
    आप बात बिल्कुल ठीक कह रहे हैं किंतु आपकी भाषा में न जाने क्यों अनावश्यक क्रोध एवं रोष है। इस ब्लॉग से लेखिका महोदया ने एक पक्ष को उजागर किया और दूसरे पक्ष के लिए हमें आपके ब्लॉग का इंतजार रहेगा ।
    धन्यवाद

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  27. भाषा कि मर्यादा के साथ लेखिकाः को उन्ही कि भाषा मे सत्य से अवगत कराया है

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  28. एक रेप होता है,सोशल मीडिया के महामानव कुम्भकर्णी नीद से ऐसे जागते है जैसे कोई नई जॉब लग गयी हो। fb में स्टेटस की बौछार हो जाती है।

    और रोज भारत मे रेप,दहेज,यौन शोषण के झूठे आरोप से तंग आकर वीडियो बना बनाकर पुरुष मरते है तब ये blogger /फेसबुकिये महामानव कहाँ चले जाते है???

    जब कभी बलात्कर होता है मैं कभी गम्भीरता नही दिखाता क्योंकि जिस देश मे यौन अपराधों में सिर्फ पुरुष ही दोषी माना जाता हो...जिस देश मे पुरुष के यौन शोषण,रेप,लज्जा भंग इत्यादि पर कोई कानून अब तक न बने हो.....जिस देश मे रेप,यौन शोषण,छेड़खानी इत्यादि के झूठे मामलों के कारण 80% पुरुष कोर्ट के चक्कर काट रहे हो ...उस देश मे किसी महिला का रेप हो जाने पर हम क्यों विचार करे???

    एक महिला का रेप तो एक बलात्कारी करता है लेकिन एक पुरुष का रेप एक बदचलन औरत,पुलिस,न्यायपालिका,मीडिया इत्यादि सब मिलकर करते है ...उसका क्या??

    प्रश्न गंभीर है....विचार जरूर करे... रेप से ज्यादा रेप के झूठे मामले चल रहे है कोर्ट में

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  29. The unbeatable fact, The bitter truth and The attitude which a real man should wear.

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  30. जब खुद के सामने आईना रखा जाता है तब जो भूत में किया उसके लिए पछतावा ही तो शेष रह जाता है।
    बाकि सवाल तो बहुत है ..........

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