ओ मां,
कैसी हो तुम,बहुत व्यस्त हो ना।
मोबाइल तो तुम्हारा तुम्हारे पर्स में ही रह गया होगा और बज रहा होगा अलमारी में बंद कहीं।मुझे पता है तुम्हारे पास इस पत्र का जवाब देने का भी समय नहीं होगा पर आज मेरी संवेदनाएं रुक नहीं रही। आज आपकी बहुत याद आई मां।सब तरफ मदर्स डे का शोर है, मै भी सोच रही थी कि मै क्या कर सकती हूं इस दिन आपके लिए, शायद मै तमाम उम्र भी कोशिश करूं तो तुम्हारे किए का दस फीसदी भी नहीं लौटा सकती।
वैसे भी मै तो कर ही क्या सकती हूं मां, सिवाय रोज नई फरमाइशें करने के,ये बताने के कि आज दिन में ये खाने की इच्छा है और रात में ये।और ये भी कि फलां फलां दिन मेरे सारे दोस्त घर आ रहे हैं आप देख लेना,और तू पचती रहती है पूरा पूरा दिन रसोई में फिर भी मुझे याद है मैंने कितनी ही बार कहा होगा मां आज ये क्या बना दिया।
आपको खाना भी नहीं बनाना आता।
मैंने कभी समझा ही नहीं कि ये एक लाइन आपको कितनी चोट पहुंचाती होगी मां?
पर मां, मां तूने कभी शिकायत ही नहीं की?
तूने कभी नहीं कहा कि बेटा ये घर तुम्हारा भी है,क्यूं नही तुम इसमें हाथ बटाती?पर तुम तो हमेशा कहती रही कि छोड़ो ये सब,तुम्हे चूल्हा चौका थोड़े ही करना है।अपनी पढ़ाई करो।
मां मै बचपन से अपनी पढ़ाई करती रही और फिर नौकरी भी लग गई,पर इस सबसे तुझे क्या दे पाई मैं।बस एक तसल्ली कि तुम अपने पैरों पर खड़ी पढ़ी लिखी बेटी की मां हो।
मुझे याद है मां बचपन में कैसे तुम सवेरे चार बजे उठकर घर का काम करती,हम सब के लिए नाश्ता बनाती,खाना बनाती और फिर आठ बजे अपने स्कूल होती।मुझे आज ये सोचकर ही बहुत दुख हो रहा है कि कभी मैं आपको कहती थी कि आपका वज़न बढ़ रहा है।पर आप करती भी क्या? इतने मसरूफ दिन के बाद कौनसी शाम तुम्हारी अपनी थी।
तुम उसे भी निकाल देती थी हमारे स्कूल/कॉलेज की अगले दिन की तैयारी में,कपड़े धोने में,इस्त्री में या फिर रसोई में।
मां कितना अर्सा हो गया मैंने देखा नहीं तुम्हें कि तुमने कभी तसल्ली से सिर में मालिश की हो,कभी गुनगुनी धूप में जाके तुम लेटी हो या हॉल में जाके तुमने कोई फिल्म देखी हो।तुम्हारी दिनचर्या कभी तुम्हारी दिनचर्या नहीं रही।ये रूटीन तो शायद हमारा था या शायद पापा का था जिसको तुमने अपना लिया था।
मां याद करना कि आखिरी बार तुम कब बाज़ार गई थी और अपनी पसंद की साड़ी लाई थी।मुझे पीछे के दस पंद्रह सालों में कभी याद नहीं आ रहा कि किसी तीज पर तुमने तसल्ली से बैठकर मेहंदी लगाई हो,तुम्हारा तीज का शगुन तो हाथ की बिंदी से ही हो जाता था।कितने दिन हो गए आपने अपना व्हाट्स एप नहीं देखा और कितने बरस हुए जब तुम आखिरी बार अजमेर से बाहर कहीं गई हो।तुमने रिश्तेदारी में कितने ही फंक्शन्स मिस किए है क्योंकि कभी हमारे एग्जाम्स होते थे तो कभी कोई बीमार होता था।तुम्हे पढ़ने का कितना शौक है मां,मेरा किताबों का प्रेम भी तुमसे और पापा से ही आया है,पर याद करो मां तुमने आखिरी बार कौनसी किताब पढ़ी थी।मुझे याद है बहुत बार तुम किसी सन्डे को सुबह अखबार लेकर बैठी हो और हम में से किसी ने कहा हो की क्या मां नाश्ता कब बनाओगी।और हां ये तो मै लिखना ही भूल गई की तुम अखबार भी केवल सन्डे को ही पढ़ पाती हो ।वो भी केवल सुबह,उस समय जब तक हम उठते नहीं है,क्योंकि हमारे उठने के बाद तो तुम्हारा दिन तुम्हारा कहां रहता है मां।कितनी बार ऐसा हुआ है मां कि तुमने बहुत जुकाम /बुखार के बावजूद भी घर संभाला है।कभी मै बाहर रही या कभी मेरे एग्जाम्स रहे। बीमारी तुझे तो छू लेती है पर बीमारी तेरे और घर के काम के बीच कभी नहीं आई।कैसे कर लेती हो मां तुम ये सब।
तुम हमेशा ध्यान रखती हो कि किसीकी क्या जरूरत है।मुझे थोड़ा सा भी कफ़ होता है तो एक दम गिना देती हो कि कितने दिन हो गए तुमने च्यवनप्राश नहीं खाया,दूध नहीं पिया।पर मां तुझे महीनों हो जाते है ग्वारपाठे का जूस पिए क्योंकि उतना भी समय नहीं होता तुम्हारे पास,तुम करेले का जूस इसलिए नहीं पी पाती क्योंकि शाम का खाना बनाने का समय हो चुका होता है।पर इन चीज़ों का कोई हिसाब कोई नहीं रखता कि तुम हमारे लिए क्या छोड़ रही हो।तुम सबका ध्यान रखती हो,आधी सोई, आधी जागी रहती हो पर चलती रहती हो।सबकी जरूरतें तुम्हारी उंगलियों पर है पर तुमने मान लिया है कि तुम्हारी जरूरतें वो ही है जो हमें पता है।
पर मां आज जब ये सब लिख रही हूं तो कुछ बातें बार बार मेरे मन में मुझे कचोट रही है।कितना अच्छा होता ना मां कि तू भी सब से हक से कहती कि मेरी ये पसंद-नापसंद है,मुझे ऐसा नहीं ऐसा चाहिए और बाकी लोग उस सब के लिए प्रयास करते,कितना अच्छा होता तू भी हम सबकी तरह सुबह और शाम की सैर पर निकल जाती, तू भी पापा की तरह किसी लाफिंग क्लब का हिस्सा होती या फिर महिलाओं की ही किसी किटी का।हम सब मिल बांट कर घर का काम करते और अपने अपने हिस्से का समय जीते।
मां मुझे इंतज़ार रहेगा उस दिन का जब तू भी कहेगी कि आज मेरी सारी फ्रेंड्स घर आ रही हैं, बेटा तू देख लेना और उस दिन का भी जब आप मुझे कोई किताब पढ़ती नजर आओगी।कितना अरसा हो गया मां तुमने अपने पुराने अलबम नहीं खोले है।जरा आज उन्हें खोल लेना, देखना तुम कैसी थी। बस अब ये मत कहना मां कि बेटा तुम्हारी सफलता ही मेरी सफलता है और तुम्हारी सार्थकता ही मेरी सार्थकता।
नहीं मां।
तुम्हारी जिन्दगी तुम्हारी ही है, उसे तुम्हे ही जीना है।उसे हम नहीं जी सकते।अपनी सार्थकता को मां तुझे अपनी ज़िन्दगी से ही पाना है ।
मां जी ले अब भी जी ले तू अपनी ज़िंदगी।
आपकी
ज्योति।
कैसी हो तुम,बहुत व्यस्त हो ना।
मोबाइल तो तुम्हारा तुम्हारे पर्स में ही रह गया होगा और बज रहा होगा अलमारी में बंद कहीं।मुझे पता है तुम्हारे पास इस पत्र का जवाब देने का भी समय नहीं होगा पर आज मेरी संवेदनाएं रुक नहीं रही। आज आपकी बहुत याद आई मां।सब तरफ मदर्स डे का शोर है, मै भी सोच रही थी कि मै क्या कर सकती हूं इस दिन आपके लिए, शायद मै तमाम उम्र भी कोशिश करूं तो तुम्हारे किए का दस फीसदी भी नहीं लौटा सकती।
वैसे भी मै तो कर ही क्या सकती हूं मां, सिवाय रोज नई फरमाइशें करने के,ये बताने के कि आज दिन में ये खाने की इच्छा है और रात में ये।और ये भी कि फलां फलां दिन मेरे सारे दोस्त घर आ रहे हैं आप देख लेना,और तू पचती रहती है पूरा पूरा दिन रसोई में फिर भी मुझे याद है मैंने कितनी ही बार कहा होगा मां आज ये क्या बना दिया।
आपको खाना भी नहीं बनाना आता।
मैंने कभी समझा ही नहीं कि ये एक लाइन आपको कितनी चोट पहुंचाती होगी मां?
पर मां, मां तूने कभी शिकायत ही नहीं की?
तूने कभी नहीं कहा कि बेटा ये घर तुम्हारा भी है,क्यूं नही तुम इसमें हाथ बटाती?पर तुम तो हमेशा कहती रही कि छोड़ो ये सब,तुम्हे चूल्हा चौका थोड़े ही करना है।अपनी पढ़ाई करो।
मां मै बचपन से अपनी पढ़ाई करती रही और फिर नौकरी भी लग गई,पर इस सबसे तुझे क्या दे पाई मैं।बस एक तसल्ली कि तुम अपने पैरों पर खड़ी पढ़ी लिखी बेटी की मां हो।
मुझे याद है मां बचपन में कैसे तुम सवेरे चार बजे उठकर घर का काम करती,हम सब के लिए नाश्ता बनाती,खाना बनाती और फिर आठ बजे अपने स्कूल होती।मुझे आज ये सोचकर ही बहुत दुख हो रहा है कि कभी मैं आपको कहती थी कि आपका वज़न बढ़ रहा है।पर आप करती भी क्या? इतने मसरूफ दिन के बाद कौनसी शाम तुम्हारी अपनी थी।
तुम उसे भी निकाल देती थी हमारे स्कूल/कॉलेज की अगले दिन की तैयारी में,कपड़े धोने में,इस्त्री में या फिर रसोई में।
मां कितना अर्सा हो गया मैंने देखा नहीं तुम्हें कि तुमने कभी तसल्ली से सिर में मालिश की हो,कभी गुनगुनी धूप में जाके तुम लेटी हो या हॉल में जाके तुमने कोई फिल्म देखी हो।तुम्हारी दिनचर्या कभी तुम्हारी दिनचर्या नहीं रही।ये रूटीन तो शायद हमारा था या शायद पापा का था जिसको तुमने अपना लिया था।
मां याद करना कि आखिरी बार तुम कब बाज़ार गई थी और अपनी पसंद की साड़ी लाई थी।मुझे पीछे के दस पंद्रह सालों में कभी याद नहीं आ रहा कि किसी तीज पर तुमने तसल्ली से बैठकर मेहंदी लगाई हो,तुम्हारा तीज का शगुन तो हाथ की बिंदी से ही हो जाता था।कितने दिन हो गए आपने अपना व्हाट्स एप नहीं देखा और कितने बरस हुए जब तुम आखिरी बार अजमेर से बाहर कहीं गई हो।तुमने रिश्तेदारी में कितने ही फंक्शन्स मिस किए है क्योंकि कभी हमारे एग्जाम्स होते थे तो कभी कोई बीमार होता था।तुम्हे पढ़ने का कितना शौक है मां,मेरा किताबों का प्रेम भी तुमसे और पापा से ही आया है,पर याद करो मां तुमने आखिरी बार कौनसी किताब पढ़ी थी।मुझे याद है बहुत बार तुम किसी सन्डे को सुबह अखबार लेकर बैठी हो और हम में से किसी ने कहा हो की क्या मां नाश्ता कब बनाओगी।और हां ये तो मै लिखना ही भूल गई की तुम अखबार भी केवल सन्डे को ही पढ़ पाती हो ।वो भी केवल सुबह,उस समय जब तक हम उठते नहीं है,क्योंकि हमारे उठने के बाद तो तुम्हारा दिन तुम्हारा कहां रहता है मां।कितनी बार ऐसा हुआ है मां कि तुमने बहुत जुकाम /बुखार के बावजूद भी घर संभाला है।कभी मै बाहर रही या कभी मेरे एग्जाम्स रहे। बीमारी तुझे तो छू लेती है पर बीमारी तेरे और घर के काम के बीच कभी नहीं आई।कैसे कर लेती हो मां तुम ये सब।
तुम हमेशा ध्यान रखती हो कि किसीकी क्या जरूरत है।मुझे थोड़ा सा भी कफ़ होता है तो एक दम गिना देती हो कि कितने दिन हो गए तुमने च्यवनप्राश नहीं खाया,दूध नहीं पिया।पर मां तुझे महीनों हो जाते है ग्वारपाठे का जूस पिए क्योंकि उतना भी समय नहीं होता तुम्हारे पास,तुम करेले का जूस इसलिए नहीं पी पाती क्योंकि शाम का खाना बनाने का समय हो चुका होता है।पर इन चीज़ों का कोई हिसाब कोई नहीं रखता कि तुम हमारे लिए क्या छोड़ रही हो।तुम सबका ध्यान रखती हो,आधी सोई, आधी जागी रहती हो पर चलती रहती हो।सबकी जरूरतें तुम्हारी उंगलियों पर है पर तुमने मान लिया है कि तुम्हारी जरूरतें वो ही है जो हमें पता है।
पर मां आज जब ये सब लिख रही हूं तो कुछ बातें बार बार मेरे मन में मुझे कचोट रही है।कितना अच्छा होता ना मां कि तू भी सब से हक से कहती कि मेरी ये पसंद-नापसंद है,मुझे ऐसा नहीं ऐसा चाहिए और बाकी लोग उस सब के लिए प्रयास करते,कितना अच्छा होता तू भी हम सबकी तरह सुबह और शाम की सैर पर निकल जाती, तू भी पापा की तरह किसी लाफिंग क्लब का हिस्सा होती या फिर महिलाओं की ही किसी किटी का।हम सब मिल बांट कर घर का काम करते और अपने अपने हिस्से का समय जीते।
मां मुझे इंतज़ार रहेगा उस दिन का जब तू भी कहेगी कि आज मेरी सारी फ्रेंड्स घर आ रही हैं, बेटा तू देख लेना और उस दिन का भी जब आप मुझे कोई किताब पढ़ती नजर आओगी।कितना अरसा हो गया मां तुमने अपने पुराने अलबम नहीं खोले है।जरा आज उन्हें खोल लेना, देखना तुम कैसी थी। बस अब ये मत कहना मां कि बेटा तुम्हारी सफलता ही मेरी सफलता है और तुम्हारी सार्थकता ही मेरी सार्थकता।
नहीं मां।
तुम्हारी जिन्दगी तुम्हारी ही है, उसे तुम्हे ही जीना है।उसे हम नहीं जी सकते।अपनी सार्थकता को मां तुझे अपनी ज़िन्दगी से ही पाना है ।
मां जी ले अब भी जी ले तू अपनी ज़िंदगी।
आपकी
ज्योति।
Very well said
ReplyDeleteGajab
ReplyDelete👍keep it up.
ReplyDeleteVery true dear..maa Ko bhi apni jeendgi ka hak hota h..par maa jaisa duniya Mai aur koi bhi nhi hota hai..n nice 👌👍💞💝💐
ReplyDelete👌
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी
ReplyDeleteBahut khub likha hai 👌👌hum sab ko yahi koshish karni chahiye ki har ma apni zindagi apni marzi se jiye
ReplyDeleteउस आधी दुनिया को वंदन
ReplyDeleteजो है जननी जो है जाया
जिसने जीवन पूर्ण बनाया
जो संस्कृति के शिर का चंदन
उस आधी दुनिया को वंदन
मर्मस्पर्शी आलेख !
Heart touching .
ReplyDeleteVery well written... beautiful emotions lines...goes for all mother's...
ReplyDeleteVery well written... beautiful emotional lines ..
ReplyDeleteVery well expressed ..dil se dil tak.
ReplyDeleteHeads off..
Its me shilpi..fm abu dhabi jyoti.
Deleteनवकोंपल की आशा तुझमे है
ReplyDeleteबासंती फिज़ा तुझ में है
फूल भले ही मैं हूँ पर
खूशबू तो तुझ से ही है
ओ माँ, प्यारी मां।।
बहुत खूब दी
संसार की सभी माताओं को मेरा प्रणाम। तू कितनी अच्छी है, तू कितनी भोली है.....प्यारी प्यारी है....ओ मां... ओ मां...मेरे लिए तू जागी है सारी सारी रतिया......
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteबिल्कुल सटीक वर्णन किया तुमने, कितनी मर्मस्पर्शी बाते है, हम माँ से सब कुछ चाहते है, लेकिन जब हमारा देने का समय( हालांकि हम दे ही क्या सकते है माँ को) आता है तो देते क्या है, आप कुछ नही समझती , आपको क्या पता, और शादी के बाद तो माँ से बस औपचारिक रिश्ता भर रखते है। क्यों भूल जाते है कि यही माँ है जिसने आपको इस काबिल बनाया है, यही जो आज आपको कम अक्ल वाली लगती है उसी ने आपको अक़्लमंद बनाया है। और जब घर मे बहु आ जाती है तो वो स्वयं माँ बनती है और त्याग करती है अपनी संतान के लिए परन्तु अपने पति की माँ में कमियां नजर आती है अजीब विडंबना है कि खुद की माँ में कभी कमी नजर नही आती।। यह नारी ही क्यों नारी विरोधी हो जाती है, विधाता ही समझ सकता है।। माँ का त्याग , ममता, स्नेह की गहराई को कोई भी नही लिख चाहे कितना ही बड़ा विद्वान क्यो ना हो।।।
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteVery nice ji
ReplyDeleteVery nice heart touching lines
ReplyDeleteVery nice heart touching lines
ReplyDeleteVery nice heart touching lines
ReplyDeleteVery well expressed, heart touching,
ReplyDeleteSalute all mothers 🙏🙏
Bahut hi Sundar !!!
ReplyDeleteअन्दर तक झकझोर कर रख दिया, जीवन की भागदौड में हम सफलता की परिभाषा ही भूल गये।
आज हम जहाँ भी हैं माँ के आशीर्वाद, अथक प्रयास, संघर्षों और बलिदानों के कारण ही हैं ।
👌👌👌
ReplyDeleteसटीक ,मर्मस्पर्शी वर्णन
ReplyDeleteशानदार, मार्मिक एवं तार्किक ��
ReplyDeleteshandar
ReplyDeleteReally heart touching
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत भाव और मर्म संवेदनाएं , मैम | नमस्कार |
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