लाल हरे
पीले रंगों भीगी
चूनर को धूप में सुखाएंगे,
तुम मन के
पंख खोल उड़ना
हम मन के पंख को छुपाएंगे, मन की हर
बंधी गाँठ खोलना
उस दिन तो दर्पण हो जाना।
पीले रंगों भीगी
चूनर को धूप में सुखाएंगे,
तुम मन के
पंख खोल उड़ना
हम मन के पंख को छुपाएंगे, मन की हर
बंधी गाँठ खोलना
उस दिन तो दर्पण हो जाना।
बस एक ऐसा ही नजारा था नगर निगम अजमेर द्वारा आयोजित रंग लहर फेस वन एवं फेस टू का ।हर कलाकार वह बच्चा हो या प्रोफेशनल उस दिन अपनी बंधी गांठे खोलकर अपने सृजन के उच्चतम शिखर पर जाना चाहता था।उसके अंतरतम की सृजनात्मकता उस दिन दर्पण बन गई थी और हम आयोजकों की दृष्टा।इस रंग लहर ने जो सूक्ष्मआभास दिया वह अप्रतिम था।भिगो दिया दो अलग-अलग चरणों में हुए आयोजन ने लाल ,पीले ,हरे, हर रंग से,रूहानियत से।सृजन कैसा भी हो, वह मानस गढ़ना हो या चित्रकारी करना वह हमेशा पूर्णता का अहसास देता है,भिगो देता है रुहानियत से।
सृजन करना ऐसा होता है जैसे स्वयं माँ बनना और उसे करते हुए देखना ऐसा होता है जैसे पिता बन अपनी अर्धांगिनी को माँ बनते हुए देखना।कुछ ऐसा ही अहसास दिया मुझे रंग लहर के दोनों आयोजनों ने। पहले आयोजन में मैं 'दृष्टा' बनी तो दूसरे में स्वयं 'दृश्य' ।आनंद एवं श्रुति की प्रेरणा एवं सहभागिता से दूसरे फेस में हमने मिलकर पेंटिंग बनाई और सृजन का मातृत्व सुख महसूस किया। बहुत दिनों से मैं अपने इन सभी एहसासों को दर्ज कर देना चाहती थी पर कलम और मेरा समय साथ गुजारना मुश्किल सा हो चला है ।दोनों दिन बहुत से एहसास थे, आज शायद यहां कुछ ही दर्ज कर पाऊं फिर भी उन्हें लिखते हुए ही जादूई अहसास हो रहा है वैसा ही जादू जैसा इन पेंटिंग्स ने इस शहर की दीवारों पर किया है।
पहले फेस को जब हम प्लान कर रहे थे तब मैं बहुत डरी हुई थी कि क्या हम सफल होंगे पर पूरे दिल से किया गया प्रयास सफल हुआ, मुझे विश्वास नहीं था कि यह प्रयास इस अद्भुत घटना को जन्म देगा।
पहले फेस को जब हम प्लान कर रहे थे तब मैं बहुत डरी हुई थी कि क्या हम सफल होंगे पर पूरे दिल से किया गया प्रयास सफल हुआ, मुझे विश्वास नहीं था कि यह प्रयास इस अद्भुत घटना को जन्म देगा।
यहां पेंटिंग बनना और शहर का सौंदर्यीकरण होना ही महत्वपूर्ण नहीं है इस संपूर्ण आयोजन ने जिस आंदोलन का रूप लिया है वह अतुलनीय है जो संदेश सभी कलाकारों और बच्चों ने दिया है उसे केवल चित्रकारी कहकर छोटा नहीं किया जा सकता!
अमीर खुसरो कह गए हैं
'रैनी चढ़ी रसूल की सो रंग मौला के हाथ
जिसके कपड़े रंग दिए सो धन धन वाके भाग
फेस वन की थीम को हमने बालिका विद्यालय देखते हुए शेड्स ऑफ विमेन रखा था पर नारी जीवन के इतने चित्र इस रंगलहर में देखने को मिलेंगे वह कल्पना से परे था।मातृत्व से लेकर आधुनिक नारी तक हर आयाम को इसमें दिखाया गया जिस प्रकार छात्रों और फ्रीलांसर ने मिलकर एक मेले जैसा माहौल वहां बनाया, कम्युनिटी पार्टिसिपेशन का इससे बेहतर कोई उदाहरण नहीं हो सकता।250 से अधिक प्रतिभागी अपने शहर के लिए जिस शिद्दत से जुड़े वह अद्भुत था ,उसे देखना भी और महसूस करना भी।
फेस टू का आयोजन फेस वन से भी ज्यादा प्रभावी रहा यह पहले से बड़ा आयोजन बना पहले से अधिक प्रतिभागी जुड़े और उसने अधिक प्रखर संदेश छोड़ा।भारत के ऐतिहासिक पुरुषों के योगदान को दर्शाने से लेकर देश के आधुनिक विकास यात्रा ,चंद्रयान,कृषि विकास,डिजिटल इंडिया, क्लीन एनर्जी, सांप्रदायिक सद्भाव, हर विषय पर पेंटिंग बनाई गई।भारत की गंगा जमुनी तहजीब का हर रंग इन दीवारों पर दिख रहा था और अंदर ही अंदर यह मान बढ़ा रहा था कि मैं हिंदुस्तानी हूं।जब सारे पैनल बन जाने के बाद मैं देख रही थी तो मैं न केवल इन के सौंदर्य पर मंत्रमुग्ध थी पर आश्चर्यचकित थी यह सोच कर कि इन कलाकारों और बच्चों ने क्या अद्भुत कर दिया है।अनजाने में ही यह आयोजन बड़े सामाजिक परिवर्तन का माध्यम बन गया है।
अमीर खुसरो कह गए हैं
'रैनी चढ़ी रसूल की सो रंग मौला के हाथ
जिसके कपड़े रंग दिए सो धन धन वाके भाग
फेस वन की थीम को हमने बालिका विद्यालय देखते हुए शेड्स ऑफ विमेन रखा था पर नारी जीवन के इतने चित्र इस रंगलहर में देखने को मिलेंगे वह कल्पना से परे था।मातृत्व से लेकर आधुनिक नारी तक हर आयाम को इसमें दिखाया गया जिस प्रकार छात्रों और फ्रीलांसर ने मिलकर एक मेले जैसा माहौल वहां बनाया, कम्युनिटी पार्टिसिपेशन का इससे बेहतर कोई उदाहरण नहीं हो सकता।250 से अधिक प्रतिभागी अपने शहर के लिए जिस शिद्दत से जुड़े वह अद्भुत था ,उसे देखना भी और महसूस करना भी।
फेस टू का आयोजन फेस वन से भी ज्यादा प्रभावी रहा यह पहले से बड़ा आयोजन बना पहले से अधिक प्रतिभागी जुड़े और उसने अधिक प्रखर संदेश छोड़ा।भारत के ऐतिहासिक पुरुषों के योगदान को दर्शाने से लेकर देश के आधुनिक विकास यात्रा ,चंद्रयान,कृषि विकास,डिजिटल इंडिया, क्लीन एनर्जी, सांप्रदायिक सद्भाव, हर विषय पर पेंटिंग बनाई गई।भारत की गंगा जमुनी तहजीब का हर रंग इन दीवारों पर दिख रहा था और अंदर ही अंदर यह मान बढ़ा रहा था कि मैं हिंदुस्तानी हूं।जब सारे पैनल बन जाने के बाद मैं देख रही थी तो मैं न केवल इन के सौंदर्य पर मंत्रमुग्ध थी पर आश्चर्यचकित थी यह सोच कर कि इन कलाकारों और बच्चों ने क्या अद्भुत कर दिया है।अनजाने में ही यह आयोजन बड़े सामाजिक परिवर्तन का माध्यम बन गया है।
दीवारों पर एहसासों की, मोहब्बत की और विकास की इस यात्रा को लिखने में नगर निगम प्रशासन को और निजी रूप से मुझे बहुत सारे लोगों ने सहयोग दिया जिसमें ख्यातनाम फोटोग्राफर पृथ्वीराज फाउंडेशन से जुड़े दीपक शर्मा जी तथा लोक कला संस्थान के संजय सेठी जी का योगदान अमूल्य है। कमिश्नर सरका यहां यह idea की पार्टिसिपेंट्स को उन्हीं की पेंटिंग का फोटो फ्रेम दिया जाए वह भी बहुत पसंद किया गया। पहले सम्मान समारोह में कलाकारों का उत्साह देखने लायक था। मेयर सर का दोनों आयोजनों में विशेष आशीर्वाद रहा और वे बराबर सहभागी रहे।कलेक्टर सर के अमूल्य सुझाव जिन पर हमने फेस 2 में अमल भी किया वह अप्रतिम है।कुछ कलाकार भी हमारे साथ कंधे से कंधा मिलाकर आयोजन में रहे जैसे प्रकाश नागौरा जी एवं उनके पुत्र, आकांक्षा शर्मा ,अलका शर्मा, सविता गर्ग ,सविता आर्य रितु शिल्पी ,नितिन एंड टीम, शेफाली जैन ।यह लिस्ट बहुत बड़ी है और सभी का योगदान अमूल्य है
।
।
वास्तव में इस जिंदा शहर की जिंदगानी ने सीना चौड़ा कर दिया है कि यह अहसास देकर कि मैं इसी शहर की हूं जहां एक ही आवाज पर इतने लोग जुड़ जाते हैं।साधुवाद सभी प्रतिभागियों को।जल्द ही नगर निगम कला कुंभ करने जा रहा है आशा है इसमें भी आपका सहयोग इसी तरह से मिलेगा।
