Sunday, 14 October 2018

अपने अंतस की यात्रा- रुद्रनाथ ट्रेक (The Journey of Self-RUDRANATH TREK)

समुद्र से लगभग 3600 मीटर ऊंचाई पर दूर तक फैली पर्वत श्रंखलाएं, सामने दिखती हिमालय की बर्फीली चोटियां,आसमान से होती हल्की-हल्की अमृत वर्षा और सामने बना इंद्रधनुष, दूर तक फैले बुरांश, मोरू के कम ऊंचाई के पेड़, चारों तरफ फैला हरी घास  का विशाल मैदान ,नीले, लाल और गहरे पीले अनाम फूलों के पौधे ,बादलों से बात करती मंदिर की घंटिया, तो कभी बाएं कभी दाएं  से बहते छोटे छोटे झरने।

इस दृश्य के बारे में सोचते ही रोमांच पैदा होता है पर अगर यह आंखों के ठीक सामने हो तो कैसा महसूस होगा।यह वो क्षण होता है जब आपका इंद्रिय महसूसना रोमांच की अनुभूति से आगे निकल चुका होता है,जब कुछ क्षणों के लिए आप अपने आप से एकाकार होते हैं और यह मन प्रकृति के सृजक के प्रति श्रद्धा से झुक जाता है।यही वह क्षण होते हैं जब मन थिर होता है, जब लौ इस संसार के डोलावन से परे स्थिर हो जाती हैं और आप निहारते रह जाते हैं उस सौंदर्य को उस प्रकृति को।ऐसे बहुत सारे अनुभव हमें हुए जब हम मरुधरा की बेटियां चल पड़ी थी हिमाल की गोद में ।एक गहरी शांति,सात्विक और ईश्वरीय सौंदर्य का अनुभव करने। देवभूमि के नीर से, उसकी पावन रज से साक्षात्कार करने, उसी में एकाकार हो जाने के लिए।आइए आपको भी ले चलते हैं रौनक, ज्योति,प्रभा और रेणुका के इस सफर पर,जहां हिमाल ने हमें अपनी ही बेटी की तरह गले लगाया और न केवल हमारे हवासों को हज बख्शा पर हमारी रूह को भी रोशन कर दिया।

यह सफर शुरू होता है 14 सितंबर से, जब हम लोग उस शाम हरिद्वार पहुंचे और वहां से 1 घंटे का सफर तय करके ऋषिकेश।अगली सुबह की शुरुआत मां गंगा के घाट पर चाय पीने के साथ हुई।इस समय गंगा को निहारने का अपना आनंद था। सामने महादेव की विशाल प्रतिमा, उसके  पार्श्व में उगता सूरज, वर्षा के बाद तीव्र उफान से बहती मां गंगा, अंग प्रत्यंग को छू रही सुबह की हल्की हल्की समीर और चारों ओर फैली असीम शांति।

ऋषिकेश से हमें भारत के मिनी स्विट्ज़रलैंड कहलाने वाले स्थान चोप्टा पहुंचना था और अगले दिन से प्रारंभ होनी थी हमारी वास्तविक यात्रा। लगभग 9:00 बजे हम लोग चोप्टा के लिए रवाना हुए।रास्ते में जगह-जगह बहते झरने,लगातार साथ साथ चलती मां गंगा की धार ,नदी पर बने खूबसूरत पुल, साथ चलते बादल,देवप्रयाग,रुद्रप्रयाग में दिव्य नदियों के खूबसूरत मिलन बिंदुओं ने रुद्रनाथ पहुंचने की उत्कंठा इतनी तीव्र कर दी थी कि बार-बार यह लगता कि जब रास्ता इतना खूबसूरत है तो मंजिल कैसी होगी।।

आखिर सफर का दूसरा पड़ाव चोप्टा आ पहुंचा जिसके लिए जितना बताया गया था वह उससे कहीं अधिक खूबसूरत था।अगले दिन प्रारंभ हुई हमारी असली यात्रा।पंच केदार में से एक केदार श्री रूद्र नाथ जी की चढ़ाई।चोपटा से 35 किलोमीटर दूर है सगर गांव।श्री राम के वंशज राजा सगर के नाम पर बसा यह खूबसूरत गांव रुद्रनाथ ट्रेक के लिए बेस कैंप है। सुबह रास्ते में चोपटा से सगर के बीच बसे केदारनाथ वन्य जीव अभ्यारण्य में देवदार,बांज के पेड़ो से आती अनुगूंजो ने जल्द ही हमें ट्रेक के लिए मानसिक रूप से तैयार कर दिया था।सुबह लगभग नौ  बजे हमने ट्रेक प्रारंभ किया तो मन में सफर का रोमांच तो था ही पर यह डर भी था कि क्या हम इस यात्रा को पूरा कर पाएंगे क्योंकि यह ट्रैक पंच केदार में कठिनतम माना जाता है। फिलहाल पहला 1 किलोमीटर बहुत जोश से निकला।हालांकि खड़ी चढ़ाई थी पर हमारे जोश की हाइट उससे कहीं ज्यादा।यहां आया पहला पड़ाव चौड़ीदार जहां से सगर की खूबसूरती देखते ही बनती थी। दोनों तरफ सीड़ीदार खेत,बीच बीच में बनी गौशालाएं, पहाड़ पर बने छोटे छोटे घर और पीठ पर सल्टा बांधे चलती पहाड़ी औरतें। ट्रैक पर पहाड़ों के हमारे साथी थे गाइड देवेंद्र सिंह नेगी, हमारा पोर्टर आदित्य और विरेंदर। यह यात्रा कभी भी इतनी सरल, इतनी सुविधाजनक नहीं हो सकती थी जितनी इन तीनों के कारण बन पाई ।

अब हमारा अगला पड़ाव था पुंग बुग्याल।जैसे-जैसे हम पहाड़ चढ़ते गए हिमाल के रंग भी उसी तरीके से बदलते जा रहे थे।जहां सगर में हमें सीड़ीदार खेत मिले वहीं पुंग तक घना वन था।लम्बे देवदार, मोरू, ओक के पेड़ों की खूबसूरती देखते ही बनती थी। इस जंगल से आती पत्तियों और माटी की गंध ने अब तक भी ज़हन का साथ नहीं छोड़ा है।यह खुशबू अब तक भिगो रही है मेरी याद को भी,मेरे मन को भी। हरियाली की चादर ओढ़े पुंग एक  खूबसूरत जगह थी।चारों तरफ हरा चारागाह,दाएं दिखता विशाल झरना जो बरबस ही बाहुबली के झरने की याद दिलाता था। जब देवेंद्र से पूछा यह क्या है तो उसने बताया कि बस वही तो हमें चलना है।तो बस सेना चल पड़ी अपने अगले पड़ाव मौली खड़क की तरफ जो वहां से 3 घंटे दूर था।

आज का हमारा पढ़ाव पनार था जहां हमें रात्रि विश्राम कर अगले दिन रुद्रनाथ के लिए निकलना था। पनार तक के इस रास्ते में पुंग से लेकर मौली खड़क तक का यह रास्ता सर्वाधिक खूबसूरत था।दाएं साथ साथ चलता पहाड़ और बाए दिखती विशाल पर्वत  श्रंखलाए। पेड़ों की लंबाई अब कुछ कम हो चुकी थी,बाहुबली वाला झरना कभी कभी आंखों से ओझल हो जाता पर उसकी कल कल की आवाज लगातार पनार तक साथ चलती रही।बीच में बहुत से छोटे झरने आए जब हमें उन्हें लांग के आगे जाना पड़ा।एकदम सफेद और ठंडा पानी,पानी से दिखते चमकीले पत्थर और धीमी धीमी पड़ती बारिश की बुँदे ।यह सब दृश्य एक पेंटिंग की तरह अंकित हो गए हैं ह्रदय पटल पर।और ह्रदय भीग जाना चाहता है फिर से उस झरने में, उस कल कल में,उस ठंडक में और उन पेड़ों की गंध में।

अब हम पहुंचे मौली खड़क से लुइटी और लुइटी से पनार बुग्याल।मौली खड़क से पनार तक का यह रास्ता पूरे ट्रेक में कठिनतम था। एक दम सीधी  पहाड़ी जिसके गोल गोल रस्ते पर हम चढ़े जा रहे थे पर रास्ता था की ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा था|चढाई टांगो और फेफड़ो दोनों का इम्तिहान ले रही थी और आँखे  राह तकती आने वाले पड़ाव की| लुइटी से दो किलोमीटर पहले जो जगह आती है उसका नाम है चक्रगोना।और नाम के अनुरूप चक्रगोना ने जो चक्कर दिए वो जीवन भर याद रहेंगे। सामन्यतया हर पड़ाव पर बने छानिये आपको दूर से ही दिख जाते थे पर यहाँ एकदम खड़ी चढाई होने के कारण चक्रगोना की पीली टाट वाली झोपड़ी अचानक ही अवतरित हुई।यह अवतरण ऐसा था जैसे मरुस्थल में प्यासे को कोई चश्मा दिख जाये।यहाँ चाय पीकर हम चल पड़े लुइटी की तरफ जो जल्द ही आ गया पर असली  परीक्षा अब थी जब हमारे गाइड ने बिना पूछे ही हौले से  मुस्कराते हुए  बताया था कि बस, ये जो झंडा दिख रहा है वही पनार है और हम लोगों को झंडा देखने के लिए अपनी गर्दन को पीछे की तरफ ३० डिग्री झुकाना पड़ा था.शायद गाइड की मुस्कान का आकार और आँखों की चमक रस्ते की कठिनाई अनुसार बदलती रहती है.उस समय शाम के साढ़े पांच बज चुके थे और उस झंडे के दर्शन  के बाद गर्दन को सीधा करने की मेरी इच्छा समाप्त हो चुकी थी.पर लुइटी में चाय और कुछ फोटो सेशन के बाद मैंने उस दिव्य झण्डे को फिर से देखा और उस ओर चलना प्रारम्भ किया.सूरज धीरे धीरे अस्तांचल की ओर जा रहा था और पैर जवाब दे रहे थे.लुइटी से दिखता झंडा खड़ी पहाड़ी के कारण अब गायब हो चूका था .पर मंजिल तक पहुँचने का जोश और उत्साह अंत तक बना रहा.देवेन्दर की पूर्वोल्लिखित मुस्कान ने जो चुनौती हमारी तरफ उछाली थी उसका जवाब देना तो जरूरी था ना.तो बस पाँव वाले मन को समझाते  समझाते और आँखों से सामने बर्फीली पहड़ियों से हो रहे सूर्यास्त को देखते देखते ही पनार आ पहुँचा।3600मीटर ऊंचाई पर बसा यह बुग्याल पूरे ट्रेक में सुंदर तम जगह थी।उस समय अपनी आँखों पर बरबस ही विश्वास नहीं हुआ था कि इतनी सुंदर जगह भी कोई हो सकती है क्या।कठिनतम खड़े पहाड़ों के जिस रस्ते से गुजरकर हम यहाँ पहुंचे थे और अब जो आनंद हमें मिल रहा था शायद यह आनंद वहीँ होगा जो बच्चे के जन्म के समय पीड़ा से कराहती माँ को नवजात की पहली झलक देखने पर मिलता है. चारों तरफ फैला अल्पाइन चारागाह।दूर दिखते देवदार और बांज के पेड़, सर पर चलते बादल,सामने दिखती मां नंदा,त्रिशूल,हाथी- घोड़ा बर्फीली चोटियां। यह वह जगह थी जहां आपका कैमरा रुक ही नहीं सकता था। सुबह हमें खूबसूरत बर्फीली पहाड़ियों से सूर्योदय देखने का मौका मिला तो उससे एक रात पूर्व पूरा चांद।

अब समय आ गया था अपनी मंजिल की ओर चलने का।पहले दो किमी की चढ़ाई और फिर 6किमी का ढलान।पनार से पितृधार तक पहले दो किमी की चढ़ाई कठिन नही थी पर जोखिम भरी थी।एक तरफ पितृधार की पहाड़ी तो दूसरी तरफ मीलों लंबी खाई।तापमान बहुत कम होने के कारण घास और कुछ फूलों की झाड़ियो के अलावा कोई वनस्पति नहीं।हम खुशकिस्मत थे कि उस दिन आसमान साफ था और सूर्यदेव हम पर मेहरबान थे।पर जब भी एक आदित्य बादलों से लुक्का छिप्पी खेलता तो हमें दूसरे आदित्य की याद आती जिसके पास हमारा सामान होता ताकि कुछ गरम पहना जा सके।पर आदि और आदि की जुगलबंदी ने बहुत सरलता से हमें पंचगंगा तक पहुंचा दिया।

अब बस मंजिल कुछ ही किमी दूर थी।देवदर्शिनी से जैसे ही भगवान श्री रूद्रनाथ मंदिर के दर्शन हुए मन प्रफुल्लित हो गया।इस पूरे रास्ते बुरांश के कम ऊंचाई के पेड़ भी हमारे साथ चलते रहे।फर,स्प्रूस,बांज,ओक के पेड़ और अलग-अलग रंगों के फूल  हमारा  स्वागत कर रहे थे।

शीघ्र ही रुद्रनाथ आ पहुंचा।एक छोटा मंदिर,कुछ छितरे हुए छानिए,जिनमे से एक उस दिन के लिए हमारा पनाहगार भी था।अत्यधिक ऊंचाई के कारण तापमान 5°से ज्यादा नही था पर  यहां चारों ओर फैली शांति और सौंदर्य का वर्णन शब्दातीत है।प्राचीन भारतीय स्थापत्य से बना एक छोटा मंदिर, चारों तरफ फैले छोटे-छोटे कुंड, सामने आंखों के सामने तैरते कपासी बादल, हल्की हल्की बूंदाबांदी और एक छोटा बना इंद्रधनुष। वहां व्याप्त असीम शांति और सात्विकता आपके मन की हर गूंज-अनुगूंज को थिर करने के लिए पर्याप्त थी। कम तापमान  की ठिठुरन के बीच  महादेव के दर्शन दिव्य थे।आरती का समय सात बजे का था,जब हमने फिर से भगवान रुद्रनाथ के दर्शन किए।

अगले दिन पुनः प्रातः कालीन दर्शन कर हम सात  बजे वहां से विदा हुए।आज हमने यहां निर्णय लिया था कि हम ढलान एक ही दिन में पूरा करेंगे और सगर पहुंचेंगे,इसीलिए हम चारों ने प्रारंभ से ही अपनी गति बनाए रखी जिससे हम दोपहर बारह  बजे तक पनार पहुंच चुके थे और मेरे अलावा 6:00 बजे तक सब लोग सगर।मेरे लिए आखिर का 1 किलोमीटर का ढलान उतरना बहुत कठिन रहा पर फिर भी अपने साथियों को ज्यादा इंतजार ना कराते हुए मैं 6:30 तक सगर पहुंची।
इस तरह मरुधरा की बेटियां लौट चुकी थी हिमाल से साक्षात्कार कर,
हिमाल को गले लगा कर,
अपनी यादों में जंगल की खुशबू छिपाएं,
कल कल की आवाज को कैद किए,
चेहरे पर बादलों का स्पर्श लिए,
और आंखों में,
बन, बूंद, फूल, रंग के बेहतरीन दृश्य लिए
और सबसे अधिक अपने अंतर तम पर रूहानी छाप लिए ।।।
एक साहसिक रोमांचक यात्रा जो यात्रा के दौरान आध्यात्मिक यात्रा में बदल चुकी थी। पहाड़ ने झोली भर के अनुभव दिया है।इसने अपने comfort zone से बाहर आना भी सिखाया है तो अपनी क्षमताओं से या कहें कि कल्पना से भी अधिक पा जाने का रोमांच भी  दिया है।यह हमें अपनी आंतरिक यात्रा पर भी ले गया तो न्यूनतम सुविधाओं के साथ रहने का अनुभव भी दे गया।पहाड़ जितने खूबसूरत हैं वहां रहना उतना ही चुनौतीपूर्ण पर शायद यही चुनौतियां हमें थोड़ा और इंसान बनाती हैं।इंसानियत जो हमें वहां बसे हर पहाड़ी में दिखी। सगर के रामजी बिष्ट में भी तो पनार के दिलबर सिंह भंडारी में भी। सबसे अधिक तो हमारे गाइड देवेंद्र सिंह नेगी का व्यवहार तो दिल को छू गया। यह शोध का विषय है क्यों साधन हीनता हमें सरलता की ओर ले जाती हैं और साधन संपन्नता जटिलता की ओर।यह यात्रा जीवन का एक यादगार अनुभव बन चुकी है, जिसमें  कुछ धारणाएं टूटी तो अहंकार विगलित हो गए।इंसानियत अपने सात्विक रूप में हमारे सम्मुख आ खड़ी हुई तो अनंत से एका हो सका। कुदरत ऐसे  सफर  बार बार बख्शे, बस ऐसी दुआ है।
आमीन।।














Sunday, 3 June 2018

लाल हरे
पीले रंगों भीगी
चूनर को धूप में सुखाएंगे,
तुम मन के
पंख खोल उड़ना
हम मन के पंख को छुपाएंगे, मन की हर
बंधी गाँठ खोलना
उस दिन तो दर्पण हो जाना।
बस एक ऐसा ही नजारा था नगर निगम अजमेर द्वारा आयोजित रंग लहर फेस वन एवं फेस टू का ।हर कलाकार वह बच्चा हो या प्रोफेशनल उस दिन अपनी बंधी गांठे खोलकर अपने सृजन के उच्चतम शिखर पर जाना चाहता था।उसके अंतरतम की सृजनात्मकता उस दिन दर्पण बन गई थी और हम आयोजकों की दृष्टा।इस रंग लहर ने जो सूक्ष्मआभास दिया वह अप्रतिम था।भिगो दिया दो अलग-अलग चरणों में हुए आयोजन ने लाल ,पीले ,हरे, हर रंग से,रूहानियत से।सृजन कैसा भी हो, वह मानस गढ़ना हो या चित्रकारी करना वह हमेशा पूर्णता का अहसास देता है,भिगो देता है रुहानियत से।

सृजन करना ऐसा होता है जैसे स्वयं माँ बनना और उसे करते हुए देखना ऐसा होता है जैसे पिता बन अपनी अर्धांगिनी को माँ बनते हुए देखना।कुछ ऐसा ही अहसास दिया मुझे रंग लहर के दोनों आयोजनों ने। पहले आयोजन में मैं 'दृष्टा' बनी तो दूसरे में स्वयं 'दृश्य' ।आनंद एवं श्रुति की प्रेरणा एवं सहभागिता से दूसरे फेस में हमने मिलकर पेंटिंग बनाई और सृजन का मातृत्व सुख महसूस किया। बहुत दिनों से मैं अपने इन सभी एहसासों को दर्ज कर देना चाहती थी पर कलम और मेरा समय साथ गुजारना मुश्किल सा हो चला है ।दोनों दिन बहुत से एहसास थे, आज शायद यहां कुछ ही दर्ज कर पाऊं फिर भी उन्हें लिखते हुए ही जादूई अहसास हो रहा है वैसा ही जादू जैसा इन पेंटिंग्स ने इस शहर की दीवारों पर किया है।
पहले फेस को जब हम प्लान कर रहे थे तब मैं बहुत डरी हुई थी कि क्या हम सफल होंगे पर पूरे दिल से किया गया प्रयास सफल हुआ, मुझे विश्वास नहीं था कि यह प्रयास इस अद्भुत घटना को जन्म देगा।

यहां पेंटिंग बनना और शहर का सौंदर्यीकरण होना ही महत्वपूर्ण नहीं है इस संपूर्ण आयोजन ने जिस आंदोलन का रूप लिया है वह अतुलनीय है जो संदेश सभी कलाकारों और बच्चों ने दिया है उसे केवल चित्रकारी कहकर छोटा नहीं किया जा सकता!
अमीर खुसरो कह गए हैं
'रैनी चढ़ी रसूल की सो रंग मौला के हाथ
जिसके कपड़े रंग दिए सो धन धन वाके भाग
फेस वन की थीम को हमने बालिका विद्यालय देखते हुए शेड्स ऑफ विमेन रखा था पर नारी जीवन के इतने चित्र इस रंगलहर में देखने को मिलेंगे वह कल्पना से परे था।मातृत्व से लेकर आधुनिक नारी तक हर आयाम को इसमें दिखाया गया जिस प्रकार छात्रों और फ्रीलांसर ने मिलकर एक मेले जैसा माहौल वहां बनाया, कम्युनिटी पार्टिसिपेशन का इससे बेहतर कोई उदाहरण नहीं हो सकता।250 से अधिक प्रतिभागी अपने शहर के लिए जिस शिद्दत से जुड़े वह अद्भुत था ,उसे देखना भी और महसूस करना भी।

फेस टू का आयोजन फेस वन से भी ज्यादा प्रभावी रहा यह पहले से बड़ा आयोजन बना पहले से अधिक प्रतिभागी जुड़े और उसने अधिक प्रखर संदेश छोड़ा।भारत के ऐतिहासिक पुरुषों के योगदान को दर्शाने से लेकर देश के आधुनिक विकास यात्रा ,चंद्रयान,कृषि विकास,डिजिटल इंडिया, क्लीन एनर्जी, सांप्रदायिक सद्भाव, हर विषय पर पेंटिंग बनाई गई।भारत की गंगा जमुनी तहजीब का हर रंग इन दीवारों पर दिख रहा था और अंदर ही अंदर यह मान बढ़ा रहा था कि मैं हिंदुस्तानी हूं।जब सारे पैनल बन जाने के बाद मैं देख रही थी तो मैं न केवल इन के सौंदर्य पर मंत्रमुग्ध थी पर आश्चर्यचकित थी यह सोच कर कि इन कलाकारों और बच्चों ने क्या अद्भुत कर दिया है।अनजाने में ही यह आयोजन बड़े सामाजिक परिवर्तन का माध्यम बन गया है।

दीवारों पर एहसासों की, मोहब्बत की और विकास की इस यात्रा को लिखने में नगर निगम प्रशासन को और निजी रूप से मुझे बहुत सारे लोगों ने सहयोग दिया जिसमें ख्यातनाम फोटोग्राफर पृथ्वीराज फाउंडेशन से जुड़े दीपक शर्मा जी तथा लोक कला संस्थान के संजय सेठी जी का योगदान अमूल्य है। कमिश्नर सरका यहां यह idea की पार्टिसिपेंट्स को उन्हीं की पेंटिंग का फोटो फ्रेम दिया जाए वह भी बहुत पसंद किया गया। पहले सम्मान समारोह में कलाकारों का उत्साह देखने लायक था। मेयर सर का दोनों आयोजनों में विशेष आशीर्वाद रहा और वे बराबर सहभागी रहे।कलेक्टर सर के अमूल्य सुझाव जिन पर हमने फेस 2 में अमल भी किया वह अप्रतिम है।कुछ कलाकार भी हमारे साथ कंधे से कंधा मिलाकर आयोजन में रहे जैसे प्रकाश नागौरा जी एवं उनके पुत्र, आकांक्षा शर्मा ,अलका शर्मा, सविता गर्ग ,सविता आर्य रितु शिल्पी ,नितिन एंड टीम, शेफाली जैन ।यह लिस्ट बहुत बड़ी है और सभी का योगदान अमूल्य है
वास्तव में इस जिंदा शहर की जिंदगानी ने सीना चौड़ा कर दिया है कि यह अहसास देकर कि मैं इसी शहर की हूं जहां एक ही आवाज पर इतने लोग जुड़ जाते हैं।साधुवाद सभी प्रतिभागियों को।जल्द ही नगर निगम कला कुंभ करने जा रहा है आशा है इसमें भी आपका सहयोग इसी तरह से मिलेगा।









सात दिन जब मैं मेरे साथ थी।
SPIC MACAY के प्रतिवर्ष होने वाले convention में कुछ साथी नियमित रूप से भाग लेते रहे हैं, मेरे विचार भी प्रतिवर्ष साम्यता महसूस करते थे की मुझे भी जाना है पर इस वर्ष सौभाग्य मिला जब सब कुछ अनुकूल था boss, leave balance और पारिवारिक-व्यक्तिगत परिस्थितियां भी।
IIT DELHI के campus में बीते सात दिन मेरे लिये किसी स्वप्न से कम नहीं थे,आश्रम जैसी दिनचर्या और संगीत एवं अध्यात्मिकता का अलौकिक अनुभव। शब्दों से परे भीतर की यात्रा।Image may contain: 6 people, people smiling, people standing and outdoor
गुरुवर् श्री प्रेम सागर जी से नाद योग की शिक्षा प्रातः 4 बजे से प्रारम्भ होकर यह यात्रा बढ़ती थी ध्रुपद की कक्षा तक।उस्ताद पद्म श्री फयाज़ुद्दीन डागर के  सानिध्य में  ध्रुपद सीखना........
यह अनुभव केवल spic macay का मंच ही दे सकता है।सुर,ताल ,आलाप जो आपको आधायात्मिक यात्रा पर ले जाए।
Spic macay के फाउंडर श्री किरण सेठ जी को सुनने से प्रारंभ हुए sessions निरंतर मुझे भीतर ही भीतर और जोड़ते गए।गिरिजा देवी,बेगम परवीना सुल्ताना और गुरबाणी गायक श्री अलंकार सिंह को सुनना यूँ था कि बुद्धि ,मन और आत्मा के सब भेद समाप्त हो गए हो,विचार शून्य...बस वह संगीत और आप स्वयं अपने ही साथ।विद्वान पद्म भूषण T N KRISHNAN के वायलिन की आवाज़ रूह की आवाज़ से कम न थी।उर्दू अदब में पढ़ा था "रूह की सदा"पर उसे महसूस किया इस CONCERT में।श्री भजन सोपोरी का संतूर वादन वह अनुभव था जिसने रोम खड़े कर दिए तो वारसी ब्रदर्स की कव्वाली उस गंगा जमुनी संस्कृति के उस किनारे ले गयी जो आज हमसे कुछ छूटती जा रही है।
मुझे अपने इंटेंसिव के साथ अलग अलग इंटेंसिव की classes में जाने का भी मौका मिला जो अलौकिक अनुभव था चाहे वो मधुबनी पेंटिंग की क्लास हो या फिर फड़ पेंटिंग की।तेलंगाना की चेरिल लोक कला हो या फिर राजस्थान की पिछवाई।रामसिंह जी की नया थिएटर की कक्षाओं का अपना आनंद था तो जैशे ला की बुद्धिज़्म की कक्षाओं का अपना।
भारत की विविध लोककलाओं ,संगीत ,नाट्यविधा,अध्यात्म के परिचय के साथ ही ये सात दिन भारत को समझने में भी बहुत सार्थक रहे,शायद ही कोई राज्य हो जिसके प्रतिनिधि इस कन्वेंशन में नही हो।सुदूर केरल और कोयम्बटूर से लेकर पिथोरागढ़,हिमाचल के साथियों से मिलना सचमुच स्वर्गीय अनुभव रहा।भारत राज्यों,गाँवों का समुच्चय भर नही पर हम सब के विभिन्न विचारों,आस्थाओं ,कलाओं,लोक संस्कृतियों और जीवन मूल्यों का समुच्चय है और इसका प्रत्यक्ष दर्शन हुआ इस कंवेंशन में।
अपने जीवन की उठापटक से दूर मुझे इस आध्यात्मिक यात्रा पर ले जाने के लिए यह आंदोलन सच में साधुवाद का पात्र है।
अपने आनंदातिरेक के इन क्षणों की प्रेरणा का माध्यम spic macay आंदोलन यूँ ही निरंतर बढ़ता रहे और volunteership की भावना इसी ऊर्जा के साथ जिन्दा रहे इन्ही शुभकामनाओं के साथ।
ज्योति ककवानीImage may contain: 2 people, people standing
अजमेर(राजस्थान)।