४ फरवरी ,
४ फरवरी वो दिन जो हम सभी सावित्री की लड़कियों के ज़हन में इस तरह रचा बसा हैं जैसे हमारे माता पिता के साथ पहली बार थामी गयी उनकी ऊँगली,जैसे बचपन की किसी दोस्त के साथ खेला गया पहला खेल ,जैसे वो पेड़ जिस पर कभी हमने झूला झूला होता है और जैसे जीवन के पहले अध्यापक की पहली प्रशंसा .कुछ यादें केवल जुगाली के लिए होती हैं तो कुछ ऐसी होती हैं, जो स्वयं ही जीवन बन जाती हैं,,सावित्री की भी एक एक याद बस इसी तरह ज़हन में बस चुकी हैं, जैसे बस कल ही तो स्कूल से निकले थे.कल ४ फरवरी को हमारे स्कूल का १०३ वा जन्मदिन था और हमारे लिए ऐसा जैसे हम सब का भी जन्मदिन हो .वास्तव में सावित्री में पढना पुनर्जन्म लेने जैसा ही होता था.....अनगढ़ को गढ़के ,आकर देकर,प्राणमय बनाकर,ये आपको अपने सबसे श्रेष्ठ स्वरुप में ले आता हैं.
कल भाग्यवश मुझे अपने विद्यालय जाने का मौका मिला जो मेरे जीवन का अद्भुत अनुभव बन गया.अपने ही विद्यालय में उसके स्थापना दिवस के मौके पर जाना और आतिथ्य ग्रहण करना .आज सुबह से ही यादों की जुगाली मेरे ज़ेहन में कुछ तेज गति से चल रही थी ,वो चंपा का पेड़,माँ सरस्वती जी की प्रतिमा,ऊपर वाला हॉल नुमा बैडमिंटन कोर्ट,भावना ,टीना,वंदना के साथ की कैंटीन की मस्तियाँ,11th क्लास का साइंस,आर्ट्स,कॉमर्स का फर्जी comparison,क्लास में मेहंदी लगवाते पकड़ा जाना,फेयरवेल की साड़ी की महीनों से तैयारी,मित्तल मेम की डांट,प्यार,बोर्ड का तनाव सब कुछ .
पर ये जुगाली स्कूल पहुँचने पर यादों के दरिया में बदल गयी ,मेरी भावनाएं स्म्रतियों के ज्वार भाटे में गोते खाने लगी ,मन कर रहा था एक एक दीवार,पेड़,रेलिंग,नोटिस बोर्ड सब को छू छू के देखूं और पूछूं की कैसा हैं वो.पूरे 11th~12th में नोटिस बोर्ड को सजाने का ड्यूटी मेरी ही थी और आज भी वो वैसा ही सजा धजा अपने पूर्ण यौवन पर मिला.वैसी ही क्लासेज ,वैसा ही गार्डन,,वैसा ही सब कुछ.बस नहीं थी तो नीना थककर मेम की डांट,मधु माथुर मेम का प्यार और किरण मित्तल मेम की नसीहतें.
स्कूल के बच्चों ,वर्तमान अध्यापिकाओं से मिलकर कल अलौकिक अनुभव हुआ.प्राचार्य श्रीमती लीलावती जी से मिलकर ये सुखद अहसास हुआ की मेरे स्कूल की कमान सही हाथों में हैं.लीलावती जी खुद भी सावित्री की ही छात्र हैं सो स्कूल के लिए उनका भी प्रेम देखते ही बनता था .उनके द्वारा बहुत ही ग्रहणीय प्रस्ताव दिया गया की पूर्व में मौजूद alumini को पुनर्जीवित किया जाये जो नयी पीढ़ी के लिए प्रेरणा बने.वास्तव में यह बहुत ही उत्तम विचार लगा मुझे क्यूंकि हम सभी किसी न किसी तरह से अपने प्यारे विद्यालय के विकास में योगदान देना चाहते हैं पर सही प्लेटफार्म नही मिल पाता .वास्तव में फेसबुक का ये ग्रुप ही जिसने हम सब को जोड़ा हैं, को ही संस्थागत alumini का रूप दिया जा सकता हैं.कुछ क्लिक्स भी आप सब के लिए लेने की कोशिश की ताकि हम सब की यादें ताज़ा हो जाये .आप सभी के सुझाव आमंत्रित है की कैसे हमारे प्यारे स्कूल को पहले से भी अधिक ऊँचाई पर पहुँचाया जा सकता है और छात्राओं का चहुंमुखी विकास सुनिश्चित किया जा सकता है.यहाँ प्राचार्य लीलामणि गुप्ता जी के भी no share कर रही हूँ ,आप सभी उनसे भी सीधे बात कर सकते हैं,उनके no हैं ~9829948803
४ फरवरी वो दिन जो हम सभी सावित्री की लड़कियों के ज़हन में इस तरह रचा बसा हैं जैसे हमारे माता पिता के साथ पहली बार थामी गयी उनकी ऊँगली,जैसे बचपन की किसी दोस्त के साथ खेला गया पहला खेल ,जैसे वो पेड़ जिस पर कभी हमने झूला झूला होता है और जैसे जीवन के पहले अध्यापक की पहली प्रशंसा .कुछ यादें केवल जुगाली के लिए होती हैं तो कुछ ऐसी होती हैं, जो स्वयं ही जीवन बन जाती हैं,,सावित्री की भी एक एक याद बस इसी तरह ज़हन में बस चुकी हैं, जैसे बस कल ही तो स्कूल से निकले थे.कल ४ फरवरी को हमारे स्कूल का १०३ वा जन्मदिन था और हमारे लिए ऐसा जैसे हम सब का भी जन्मदिन हो .वास्तव में सावित्री में पढना पुनर्जन्म लेने जैसा ही होता था.....अनगढ़ को गढ़के ,आकर देकर,प्राणमय बनाकर,ये आपको अपने सबसे श्रेष्ठ स्वरुप में ले आता हैं.
कल भाग्यवश मुझे अपने विद्यालय जाने का मौका मिला जो मेरे जीवन का अद्भुत अनुभव बन गया.अपने ही विद्यालय में उसके स्थापना दिवस के मौके पर जाना और आतिथ्य ग्रहण करना .आज सुबह से ही यादों की जुगाली मेरे ज़ेहन में कुछ तेज गति से चल रही थी ,वो चंपा का पेड़,माँ सरस्वती जी की प्रतिमा,ऊपर वाला हॉल नुमा बैडमिंटन कोर्ट,भावना ,टीना,वंदना के साथ की कैंटीन की मस्तियाँ,11th क्लास का साइंस,आर्ट्स,कॉमर्स का फर्जी comparison,क्लास में मेहंदी लगवाते पकड़ा जाना,फेयरवेल की साड़ी की महीनों से तैयारी,मित्तल मेम की डांट,प्यार,बोर्ड का तनाव सब कुछ .
पर ये जुगाली स्कूल पहुँचने पर यादों के दरिया में बदल गयी ,मेरी भावनाएं स्म्रतियों के ज्वार भाटे में गोते खाने लगी ,मन कर रहा था एक एक दीवार,पेड़,रेलिंग,नोटिस बोर्ड सब को छू छू के देखूं और पूछूं की कैसा हैं वो.पूरे 11th~12th में नोटिस बोर्ड को सजाने का ड्यूटी मेरी ही थी और आज भी वो वैसा ही सजा धजा अपने पूर्ण यौवन पर मिला.वैसी ही क्लासेज ,वैसा ही गार्डन,,वैसा ही सब कुछ.बस नहीं थी तो नीना थककर मेम की डांट,मधु माथुर मेम का प्यार और किरण मित्तल मेम की नसीहतें.
स्कूल के बच्चों ,वर्तमान अध्यापिकाओं से मिलकर कल अलौकिक अनुभव हुआ.प्राचार्य श्रीमती लीलावती जी से मिलकर ये सुखद अहसास हुआ की मेरे स्कूल की कमान सही हाथों में हैं.लीलावती जी खुद भी सावित्री की ही छात्र हैं सो स्कूल के लिए उनका भी प्रेम देखते ही बनता था .उनके द्वारा बहुत ही ग्रहणीय प्रस्ताव दिया गया की पूर्व में मौजूद alumini को पुनर्जीवित किया जाये जो नयी पीढ़ी के लिए प्रेरणा बने.वास्तव में यह बहुत ही उत्तम विचार लगा मुझे क्यूंकि हम सभी किसी न किसी तरह से अपने प्यारे विद्यालय के विकास में योगदान देना चाहते हैं पर सही प्लेटफार्म नही मिल पाता .वास्तव में फेसबुक का ये ग्रुप ही जिसने हम सब को जोड़ा हैं, को ही संस्थागत alumini का रूप दिया जा सकता हैं.कुछ क्लिक्स भी आप सब के लिए लेने की कोशिश की ताकि हम सब की यादें ताज़ा हो जाये .आप सभी के सुझाव आमंत्रित है की कैसे हमारे प्यारे स्कूल को पहले से भी अधिक ऊँचाई पर पहुँचाया जा सकता है और छात्राओं का चहुंमुखी विकास सुनिश्चित किया जा सकता है.यहाँ प्राचार्य लीलामणि गुप्ता जी के भी no share कर रही हूँ ,आप सभी उनसे भी सीधे बात कर सकते हैं,उनके no हैं ~9829948803